प्रताप जी शूरजी वल्लभजी
दशकों पहले तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री गुलजारीलाल नन्दा एक बार किसी आवश्यक कार्य से दिल्ली से मुंबई कुछ दिनों के लिए आने वाले थे। वे सुबह-शाम गाय का शुद्ध दूध पीने के अभ्यस्त थे। उस समय महाराष्ट्र के प्रसिद्ध नेता एस.के. पाटिल जो केन्द्र में मंत्री रह चुके थे अपनी पहल पर गृहमंत्री की इस छोटी सी दैनिक व्यवस्था के लिए मुंबई में उनके आतिथेय के लिए गिरगांव चैपाटी में ‘कच्छ कैसल’ बहुमंजिला भवन में रहने वाले विख्यात प्रतापसिंह सूरजी वल्लभदास के पास गए। प्रतापसिंहजी एक अत्यन्त स्पष्टवादी निर्भीक सार्वजनिक छवि वाले उद्योगपति होने के साथ-साथ अखिल भारतीय सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष भी थे। एस.के, पाटिल ने उन्हीं के यहां नंदाजी के लिए अल्पाहार के साथ दूध की व्यवस्था की थी। यह विस्मयजनक था कि प्रताप भाई ने तुरन्त ही एस.के. पाटिल को मना करवा दिया जिससे वह चकित रह गए। स्वयं पाटिल उनके आवास पर गए क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि गाय के दूध की व्यवस्था उनके मित्र के घर बहुत अच्छी थी, फिर क्यों उन्होंने इसे मना कर दिया।
सेठ प्रतापजी भाई ने खुलकर कह दिया कि भारत के गृहमंत्री होते हुए भी यदि नंदाजी का गौहत्या बंद करवाने का साहस नहीं है तो इन्हें गाय के दूध का सेवन करने के नियम की क्या जरूरत है? अंततरू उन्होंने उक्त व्यवस्था नहीं की। यह बात गुलजारीलाल नंदा को मालूम होने पर स्वयं वे मुंबई में प्रतापभाई से मिलने गए और बोले कि आपने मुझे बहुत अच्छी नसीहत दी है। जब तक गौहत्या बंदी के लिए में कुछ न करूंगा तब तक गौ के दूध का सेवन नहीं करूंगा। आगे चलकर उनके प्रयास से 14 प्रदेशों में गौवध विषेध संबंधी कानून पारित हुए थे। यह प्रकरण हाल में 95 वर्षीय प्रतापजी वल्लभदास ने 23 दिसम्बर 2012 के दिन मुंबई में सार्वजनिक समारोह में जो बोरीवली स्थित स्वातंत्र्य वीर सावरकर उद्यान में आयोजित हुआ था, उसकी अध्यक्षता रते हुए अपने संस्मरणों में जनता के बीच स्वयं सुनाया।
वेटिकन के पोप जॉन पॉल द्वितीय राजकीय अतिथि के सम्मान के साथ भारत में 1965 में आए थे। तब सरकारी तंत्र द्वारा किस प्रकार उनका भव्य स्वागत होने वाला था। शूरजी वल्लभदास को यह भी ज्ञात हुआ कि उस समय भिन्न-भिन्न कार्यक्रमों में भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री लालबहादुल शास्त्री बी उनके स्वागत में आने वाले थे। वे व्यथा और रोष से उद्वेलित हो उठे। पोप की यात्रा का एजेंडा और लक्ष्य उनके आने के पहले ही पता था क्योंकि वेटिकन के कार्डिनलों की एक सभा में पोप घोषित कर चुके थे कि आगामी कुछ वर्षों में भारत के पिछड़े व विपन्न वर्ग के दो करोड़ लोगों को उन्हें ईसाई धर्म में दीक्षित करना है। आयोजन की विस्तृत जानकारी और वेटिकन के धर्मान्तरण के लक्ष्य के कुछ लिखित गोपनीय दस्तावेज लेकर मुंबई के कुछ जागरुक संगठनों का एक प्रतिनिधि मंडल जिसमें शूरजी वल्लभदास भी थे चुप चाप दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से मिला। जब प्रधानमंत्री से वे मिले तो उनका पहला प्रश्न था-यह सामग्री व वेटिकन का प्रस्तावित धर्मान्तरण का द स्तावेज आपको क हां से मिला? प्रतापजी भाई बोले कि देश के प्रधानमंत्री के पास यह जानकारी नहीं है, यह अचम्भे की बात है। लालबहादुर शास्त्री जी से आग्रह किया गया कि वे पोप जॉन पॉल द्वितीय के कार्यक्रमों में न जाएं अन्यथा भारत में आगे जितना भी ईसाई मतान्तरण होगा उस सबका दोष आप पर होगा। प्रधानमंत्री ने तुरन्त अपने सचिव को बुलाया और आयोजकों को सूचित करने को कहा कि वे सरकारी कामों की व्यस्तता के कारण वे मुंबई नहीं आ रहे हैं।
प्रतिनिधि मंडल ने प्रधानमंत्री से यह भी आग्रह किया किया राष्ट्रपति को मुंबई न जाने की सलाह दें। प्रधानमंत्री ने तुरन्त राष्ट्रपति भवन को उक्त आग्रह किया तथा प्रतिनिधि मंडल को राष्ट्रपति भवन भेजा जहां वह डॉ. राधाकृष्णनन से मिला। राष्ट्रपति ने स्वयं बताया कि मेरी इच्छा मुंबई जाने की नहीं है, अच्छा हुआ आप लोग आ गए। उन्होंने भी पोप जॉन पॉल के कार्यक्रम में जाना निरस्त कर दिया।
सेठ प्रतापजी भाई ने खुलकर कह दिया कि भारत के गृहमंत्री होते हुए भी यदि नंदाजी का गौहत्या बंद करवाने का साहस नहीं है तो इन्हें गाय के दूध का सेवन करने के नियम की क्या जरूरत है? अंततरू उन्होंने उक्त व्यवस्था नहीं की। यह बात गुलजारीलाल नंदा को मालूम होने पर स्वयं वे मुंबई में प्रतापभाई से मिलने गए और बोले कि आपने मुझे बहुत अच्छी नसीहत दी है। जब तक गौहत्या बंदी के लिए में कुछ न करूंगा तब तक गौ के दूध का सेवन नहीं करूंगा। आगे चलकर उनके प्रयास से 14 प्रदेशों में गौवध विषेध संबंधी कानून पारित हुए थे। यह प्रकरण हाल में 95 वर्षीय प्रतापजी वल्लभदास ने 23 दिसम्बर 2012 के दिन मुंबई में सार्वजनिक समारोह में जो बोरीवली स्थित स्वातंत्र्य वीर सावरकर उद्यान में आयोजित हुआ था, उसकी अध्यक्षता रते हुए अपने संस्मरणों में जनता के बीच स्वयं सुनाया।
वेटिकन के पोप जॉन पॉल द्वितीय राजकीय अतिथि के सम्मान के साथ भारत में 1965 में आए थे। तब सरकारी तंत्र द्वारा किस प्रकार उनका भव्य स्वागत होने वाला था। शूरजी वल्लभदास को यह भी ज्ञात हुआ कि उस समय भिन्न-भिन्न कार्यक्रमों में भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री लालबहादुल शास्त्री बी उनके स्वागत में आने वाले थे। वे व्यथा और रोष से उद्वेलित हो उठे। पोप की यात्रा का एजेंडा और लक्ष्य उनके आने के पहले ही पता था क्योंकि वेटिकन के कार्डिनलों की एक सभा में पोप घोषित कर चुके थे कि आगामी कुछ वर्षों में भारत के पिछड़े व विपन्न वर्ग के दो करोड़ लोगों को उन्हें ईसाई धर्म में दीक्षित करना है। आयोजन की विस्तृत जानकारी और वेटिकन के धर्मान्तरण के लक्ष्य के कुछ लिखित गोपनीय दस्तावेज लेकर मुंबई के कुछ जागरुक संगठनों का एक प्रतिनिधि मंडल जिसमें शूरजी वल्लभदास भी थे चुप चाप दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से मिला। जब प्रधानमंत्री से वे मिले तो उनका पहला प्रश्न था-यह सामग्री व वेटिकन का प्रस्तावित धर्मान्तरण का द स्तावेज आपको क हां से मिला? प्रतापजी भाई बोले कि देश के प्रधानमंत्री के पास यह जानकारी नहीं है, यह अचम्भे की बात है। लालबहादुर शास्त्री जी से आग्रह किया गया कि वे पोप जॉन पॉल द्वितीय के कार्यक्रमों में न जाएं अन्यथा भारत में आगे जितना भी ईसाई मतान्तरण होगा उस सबका दोष आप पर होगा। प्रधानमंत्री ने तुरन्त अपने सचिव को बुलाया और आयोजकों को सूचित करने को कहा कि वे सरकारी कामों की व्यस्तता के कारण वे मुंबई नहीं आ रहे हैं।
प्रतिनिधि मंडल ने प्रधानमंत्री से यह भी आग्रह किया किया राष्ट्रपति को मुंबई न जाने की सलाह दें। प्रधानमंत्री ने तुरन्त राष्ट्रपति भवन को उक्त आग्रह किया तथा प्रतिनिधि मंडल को राष्ट्रपति भवन भेजा जहां वह डॉ. राधाकृष्णनन से मिला। राष्ट्रपति ने स्वयं बताया कि मेरी इच्छा मुंबई जाने की नहीं है, अच्छा हुआ आप लोग आ गए। उन्होंने भी पोप जॉन पॉल के कार्यक्रम में जाना निरस्त कर दिया।
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