मुनिवर पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी
निधन : चैत्र कृष्णपक्ष १३ संवत् १९४७ बुधवार १९ मार्च १८९०

मुनिवर की रचनाएँ
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Title
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Editor
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Publisher
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1
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The works of late Pandit Gurudatta Vidyarthi MA with a biographical sketch.
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Edited by Jiwan Das Pensioner, Vice President, Lahore Arya Samaj
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The Aryan printing, publishing & general Trading Co Ltd, Lahore 1897 (Ed1), 1902 (Ed II), 1912 (Ed III)
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2
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Wisdom of the Rishis or Works of Pdt Gurudatta Vidyarthi MA with a biographical sketch by Pt Chamupati
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Edited by Swami Vedanand Tirth
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Rajpal & Sons, Lahore, 1912; Sarvedeshik Pustakaalaya, Delhi, 1959
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3
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Gurudatta Lekhawali
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Translated By Santram BA; and Bhagvad Datta BA
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Rajpaal, Lahore, 1918; Govindram Hasanand
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4
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Vaajasaneya Sanhita Upanishad OR Ishopanishat (Sanskrit text with English Translation)
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Virjanand Press, Lahore, 1888
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5
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Ishopanishad
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Translated in Hindi by Atmaaram Amritsari
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Anglo Sanskrit Yantralaya, Lahore
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6
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Mundakopanishad
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Virjanand Press, Lahore, 1889; Virjanand Press 1893, 1919 (Edited by Durga Prasad)
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7
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Mandukya Upanishad
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Translated in Hindi by Atmaaram Amritsari
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Anglo Sanskrit Yantralaya, Lahore
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8
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Mandukya Upanishad
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Translated in Urdu by Atmaaram Amritsari
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Anglo Sanskrit Yantralaya, Lahore
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9
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The terminology of the Vedas (Pt 1)
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Aryan Tract Society, Lahore, 1888
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10
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The terminology of the Vedas and European Scholars (Pt 2)
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Vedic Magazine, Lahore, 1889
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11
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Evidences of the Human Spirit Pt 1
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Vedic Magazine, Lahore, 1889
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12
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Evidences of the Human Spirit Pt 2
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Vedic Magazine, Lahore, 1889
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13
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Evidences of the Human Spirit (Chicago Edition)
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Vedic Magazine, Lahore, 1889
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Pecuniomania
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Vedic Magazine, Lahore, 1889
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Pecuniomania (with a brief biographical sketch of the author)
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Hindi Translation by Omprakash, vedic Missionary, Jullunder City
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?
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Dhan Ka Dhah (Pecuniomania)
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Urdu Translation by Mahashay Vazirchand dwara
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Arya Pratinidhi Sabha - Panjab ke Tatvaa Vadhan
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The Realities of Inner Life
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Vedic Magazine, Lahore
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18
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The Realities of Inner Life (with a brief biographical sketch of the author)
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Hindi Translation by Omprakash, vedic Missionary, Jullunder City
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19
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Ruhani Zindagi ki Hakikat (The Realities of Inner Life)
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Urdu Translation by Mahashay Vazirchand dwara
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Arya Pratinidhi Sabha - Panjab ke Tatvaa Vadhan
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20
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Criticism on Monier Williams’ Indian Wisdom
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Arya Pratinidhi Sabha, Punjab, Lahore, 1893
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21
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A reply to Mr. Williams Criticism on Niyoga
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Aryan Tract Society, Lahore, 1890
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T Williams Sahab ke Niyoga par Gosalochan ka uttar (A reply to Mr. Williams Criticism on Niyoga)
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Translated to Hindi by Parmamnand Vidyarthi & Ratnalal Vidyarthi
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Vedic text No 1 (The atmosphere)
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Virjanand Press, Lahore, 1888
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24
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Vedic text No 2 (The Composition of Water)
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Virjanand Press, Lahore, 1888
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Vedic text No 3 (Being a Grihastha) – A Scientific Exposition of Mantras No 1, 2 & 3 of the 30th Sukta of the RigVeda on the subject of household
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Virjanand Press, Lahore, 1888
Also Translated in Hindi by Swami Brahmanand Saraswati
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Origin of Thought and Language
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Virjanand Press, Lahore 1888
Arya Tract Society, Lahore, 1893
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Conscience and the Vedas with reference to the Brahmo Samaj
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27
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Religious Sermons (Criticism of a book entitled short sermons and Essays on Religious subjects by a Punjabi Brahmo)
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28
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A reply to some criticism of Swamiji’s Veda Bhasya
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29
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Man’s Progress Downwards
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Righteousness or unrighteousness of Flesh Eating
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31
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A reply to Mr. T Willams letter on Idolatory in the Vedas
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Mr. T Williams on vedic Text No.1 (The Atmosphere)
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33
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Mr. Pincot on the Vedas
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लेखक के विषय में

Father :
लाला राम कृषणा
:
शरी मति सेवी बाई
जनम व वंश परिचय पण गरदतत का जनम २ ६ अपरैल १ ८ ६ ४ इसवी को मलतान नगर ;पशचिमी पंजाब दध में हआ। मलतान शहर पंजाब का क अनपम शहर है। पं ण गरदतत के पिता का नाम लाला रामकृषण था। लाला रामकृषण फारसी के योगय विदवान और पंजाब के डीतरशिकषा विभाग में अधयापक थे। इनका अचछा मान.सममान था। लाला मकृषण शरीर से बलवान थे। इनकी बदधि तेज़ और समरण शकति बहत पककी थी। पं ण गरदतत सरदाना वंश के थे। जिस वंश में राजा जगदीश जैसे पराकरमी राजा ने सवदेश और सवधरम के लि अपना जीवन समरपित कर दिया था। इसलि वंशानकल गण के कारण पं ण गरदतत विधारथी जनम से सरदाना ;अपने सिर को सवधरम हितारथ अरपित करने वाले दध थे। पं ण गरदतत की माता यदयपि अनपढ़ थी परनत वह बहत ही उदार गृह .कारय में निपरण और धारमिक वृतती की देवी थी। उनकी बहत सी संताने हई उनमें से थोड़ी ही जीवित रही। पं ण गरदतत उनके अनतिम पतर थे। बलयावासता रू. गरदतत जी का बालयकाल जिजञास सवभाव का था। बचपन से ही साधारण वसतओ के विषय में वे विचितर परशन करते थे। माता .पिता का गरदतत के साथ असीम सनेह था। अतयंत लाड.पयार वं सावधानी से उनहोंने उनका पालन .पोषण किया। लाला रामकृषण सवयं क परतिषठित अधयापक थे। अतः गरदतत को आरंभिक शिकषा घर पर दी गई। पांच वरष की अवसथा में उनेह क मसलमान के दवारा घर पर ही उरदू की शिकषा दी गई। छोटी आय में गरदतत दी हई शिकषा को तरंत गरहण कर लेते थे। लाला रामकृषण जी का पढ़ने का ढंग बहत ही मनोरंजक होता था। वे मार .पिटाई के पकष में नहीं थे। परसकार वं खाने .पीने का परदारथ देकर पढाई के लि वं जिजञासा के लि गरदतत को वं अनय बचचो को भी निरंतर उतसाहित करते रहते थे। लाला रामकृषण को अंगरेजी का जञान नहीं था अतः उनहोंने पतर को अंगरेजी की शिकषा देने के लि सवयं अंगरेजी पढ़ी वं गरदतत को अंगरेजी की शिकषा दी सकूल चरितर रू. गरदतत के पिताजी डिसटरिकट सकूल ंग में अधयापक थे। इसलि उनहोंने गरदतत को अपने ही सकूल में परवेश करा दिया। उस समय उनकी आय ८ वरष की थी। बचपन से ही गरदतत को घर में उततम वातावरण तथा संसकारो की शिकषा दी गई थी। अतः पाठयपसतको को पढने के में उनेह जयादा कठिनाई नहीं हई। गरदतत की योगयता को देखकर अनय विधारथी उनेह गरूजी भी कहा करते थे। मिडिल पास करने के बाद वे अपनी जनमभूमि मलतान चले गये वं वहां राजकीय उचच विधालय में अपनी परविषट हो गये। हाई .सकूल के सभी अधयापक गरदतत को बहत परेम करते थे। सकूल के परधानाचारय बाबू मनमोहन सरकार के तो वे कृपा पातर ही बन गये थे। पाठय पसतको के साथ अनय पसतको को वे रचिपूरवक पढ़ते थे। उनेह बचपन से ही पसतको से इतना परेम था कि सबसे पहले तो उनहोंने सकूल के पसतकालय को पढ़ डाला। पसचात मलतान शहर के अनय पसतकालयों की पसतके पढ़ी। छातर जीवन में ही वे करने लगे। गरदतत की योगयता इतनी थी की गदय को भी पदय में तरंत बदल देते थे। वे गणित के कठिन से कठिन परशनों के उततर मोखिक दे दिया करते थे। सौ से भी अधिक नामों को क बार सनकर उसी करम में सना देते थे। क बार पंजाब विशवविधालय के रजिसटरार डॉ लाइटनर के आगरह से उसने गवरमेंट कालेज लाहौर में कछ विशिषट आगनतको के सममख अपनी इसी अदभत समरण शकति का परदरशन भी किया था। उनकी मेधा बदधि को देखकर सभी लोग आशचरयचकित हो गये। आरय समाज में परवेश रू. मलतान में गरदतत के आने से पहले ही आरय समाज की सथापना हो गई थी। मलतान में भकत रैमलदास तथा लाला चेतना ननद गरदतत के अभिनन मितर थे। ये दोनों यवक आरय समाज मलतान के सभासद थे। इनसे गरदतत ईशवारादी के विषय में परशन किया करते थे। इनही की परेरणा से गरदतत ने सतयपरकाश पढ़ा। आरयसमाज में धीरे .धीरे रूचि बड़ने लगी। फिर कया था घ आरयसमाज को मिल गया क सा हीरा जिसकी कलपना किसी ने नहीं की थी। इस परकार २ ० जून १ ८ ८ ० के दिन उनहोंने आरयसमाज की सदसयता गरहण की वसतत रू वह दिन आरयसमाज के लि बहत ही सौभागयशाली था। आरय गरंथो से परेम रू. आरयसमाज में परविषट होते ही गरदतत नियमपूरवक आरयसमाज जाने लगे। सवामी दयानंद की तरिगवेदादीभाषयभूमिका का अधयन कर आरयसमाज मलतान के अधिकारियो से कहा कि .अषटाधयायी तथा वेदभाषय पढने का परबंद कर दो अनयथा मैं लोगो से यह कह दूंगा कि यहा किसी भी वयकति में संसकृत पढ़ाने की योगयता नहीं है। आरयसमाज की ओर से पं ण अकषयानंद को पढ़ाने के लि मलतान बलाया गया। गरदतत रैमलदास आदि ने संसकृत पढनी परारंभ कर दी परनत पं ण अकषयानंद भी उनको पढ़ाने में असमरथ सिदध ह। पशचात गरदतत ने सवयं वेदांग परकाश की सहायता से संपूरण अषटाधयायी नौमास में पड़ ली। मलतान में डॉ वैलेंटाइन दवारा लिखित श ईजी लैसंज इन संसकृत गरामर श मिली। गरदतत ने इसे भी पढ़ा। शनै रूशनै अरयोददेशयरतनमाला आदि अनय ऋषि कृत गरंथो के परति गरदतत की रूचि बढती गई। आरयसमाज में उन दिनों अषटाधयायी अरयोददेशयरतनमाला तथा वेदभाषयभूमिका में उनकी परीकषा ली गई तथा परसकार में उनेह शभूमिका श की क परति दी गई। कहते हैं कि ऋषि दयानंद के अमर गरनथ सतयपरकाश को उनहोंने १ ८ बार पढ़ा और सवयं वे कहा करते थे ष जितनी बार मैं इसे पढता हू। मे नवीन और ताज़ा चीज़ मिलती हैं। ष कालेज में जीवन रू. सकूल की पढाई समापत करने के पशचात जनवरी १ ८ ८ १ में गरदतत ने गवरनमेंट कालेज लाहौर में परवेश लिया। तब लाहौर में यही कमातर कालेज था। गरदतत ने रहने का परबंध छातरावास में किया। लाजपतराय तथा हंसराज दोनों ही उनके सहपाठी थे। थोड़े समय में ही गहरी मैतरी हो गई। विचार सवातंतरय उदारता निशछल जीवन सतयपरियता सनेहयकत वयवहार वं सबोध वकतृतव शकति के कारण वे थोड़े ही दिनों में अधयापको वं मितरों में से दीवान नरेनदरनाथ म ण ण ;सहायक कमिशनर दध लाला शिवनाथ इंजीनियर लाला भगतराम बी ण णमंशिफ लाला चेतनाननद वी ण ण वकील व परो ण रचिराम थे। आरयसमाज लाहौर के परधान लाला साईंदास दढ़ निशचयी साहसी वं सतयवादी थे। वह नवयवकों से बहत परेम करते थे। गरदतत विधारथी कालेज जीवन में ही साथियों को वैदिक धरम में विसवास दिलाते थे। कालेज में पं ण गरदतत विधारथी के विचारो से परभावित होकर लाला लाजपतराय आरयसमाज लाहौर के वारषिकोतसव पर दो दिसमबर १ ८ ८ २ के दिन आरयसमाज के सभासद बने थे। लाला जी ने लिखा है आरयसमाज के माधयम से मे भारत के नव जागरण हेत काम करने की दीकषा देने वाला वही वयकति था




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