पंडित इंद्र विद्यावाचस्पति

पंडित इंद्र विद्यावाचस्पति आर्यसमाज तथा भारत के ही नहीं वरन विश्व के महान साहित्यकारों की अग्रिम पंक्ति की एक यशस्वी लेखक थे आप कभी थे इतिहासकार उपन्यासकार पत्रकार गीतकार दिल्ली में हिंदी पत्रकारिता के जनक गवे शक के लेखक स्वाधीनता सेनानी एक ही फेफड़ा था फिर भी मुल्तान जैसी नार किए जेल में देशहित में यातनाएं सही अत्यंत संयमी व सहनशील बिना क्लोरोफॉर्म सूखे कूल्हे की हड्डी टूटने पर ऑपरेशन करवाकर लोहे का सरिया उस में डलवा लिया आहा तक मुंह से नहीं निकली प्रबंध फोटो मधुर वक्ता और सभा संस्था चलाने में कुशल शास्त्रार्थ महारथी थे धर्म दर्शन और नीति ग्रंथों के मर्मज्ञ थे बिना सोचे दोनों भाइयों ने पैतृक संपदा दान करने के लिए पिताश्री महात्मा मुंशीराम जी सन्यास उपरांत स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज को सब अधिकार लिखकर दे दिए उनके दो सूफियों का उल्लेख अति आवश्यक है पहली ज्ञान के बिना कर्म अंधा है तो कर्म के बिना ज्ञान लंगड़ा लूला है उनके एक संपादकीय का शीर्षक था लंगड़ा खूनी मैदान में गंभीरता से विचार है

Comments

Popular posts from this blog

मुनिवर पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी

पंडित गंगाप्रसाद जी उपाध्याय

रक्तसाक्षी धर्मवीर पंडित लेखराम आर्यमुसाफिर